Sin Goods पर अब लगेगा 40% GST: जानिए क्या है नई टैक्स स्लैब और किन प्रोडक्ट्स पर होगा असर

Sin Goods and Super Luxury Items to Have 40 % GST

40% GST on Sin goods and Super Luxury Items: भारत सरकार ने GST स्ट्रक्चर में बड़ा बदलाव किया है। 3 सितंबर 2025 को हुई 56वीं GST काउंसिल मीटिंग में यह निर्णय लिया गया कि अब GST केवल तीन मुख्य दरों में होगा – 0%, 5% और 18%, जबकि “Sin Goods” और कुछ अल्ट्रा-लक्ज़री प्रोडक्ट्स पर सीधा 40% टैक्स लगेगा। यह नई व्यवस्था 22 सितंबर 2025 से लागू होगी।

Sin Goods क्या होते हैं?

“Sin Goods” ऐसे प्रोडक्ट्स और सेवाएँ होती हैं जिन्हें समाज के लिए हानिकारक माना जाता है। ये या तो स्वास्थ्य पर बुरा असर डालते हैं, या नैतिक दृष्टिकोण से हानिकारक समझे जाते हैं। इन पर ज्यादा टैक्स लगाने का उद्देश्य है कि लोग इन्हें कम इस्तेमाल करें।

इसमें शामिल हैं:

  • तंबाकू उत्पाद – पान मसाला, गुटका, सिगरेट, च्युइंग टोबैको, सिगार आदि।
  • शुगर युक्त और कार्बोनेटेड ड्रिंक्स – कोल्ड ड्रिंक्स, एनर्जी ड्रिंक्स, कैफीन युक्त पेय।
  • लक्ज़री और हाई-एंड व्हीकल्स – 350cc से बड़े इंजन वाली बाइक्स, बड़ी पेट्रोल-डीज़ल कारें, SUVs और MPVs।
  • अल्ट्रा-लक्ज़री प्रोडक्ट्स – यॉट्स, पर्सनल एयरक्राफ्ट, रेसिंग कार्स।
  • गैम्बलिंग और बेटिंग – ऑनलाइन गेमिंग, कैसिनो, हॉर्स रेसिंग, लॉटरी, IPL जैसे कुछ स्पोर्ट्स इवेंट्स के टिकट।

नई लिस्ट: 40% GST स्लैब में शामिल सामान

Government to impose 40% GST on Sin Goods
  • पान मसाला, गुटका
  • सिगरेट, सिगार, चिरूट्स
  • च्युइंग टोबैको, अनमैन्युफैक्चर्ड टोबैको
  • एरेटेड व कार्बोनेटेड ड्रिंक्स (फ्रूट बेस्ड भी शामिल)
  • कैफिनेटेड बेवरेजेस
  • 350cc से ऊपर की मोटरसाइकिल
  • पेट्रोल कार >1200cc, डीज़ल कार >1500cc और SUV/MPV
  • यॉट्स, पर्सनल एयरक्राफ्ट, रेसिंग कार्स
  • बेटिंग, लॉटरी, कैसिनो, हॉर्स रेसिंग

पहले इन आइटम्स पर 28% GST + Compensation Cess लगता था, जो मिलाकर लगभग 40% टैक्स बनता था। अब इसे एक ही 40% स्लैब में शामिल कर दिया गया है।

उपभोक्ताओं पर असर

  • सामान्य उपयोग की चीज़ें सस्ती होंगी – जैसे टूथपेस्ट, साबुन, शैम्पू, छोटे टीवी, AC, बीमा पॉलिसी अब 18% या 5% स्लैब में आ गई हैं।
  • बेसिक फूड आइटम्स जैसे UHT मिल्क, पनीर, रोटी को जीरो टैक्स कैटेगरी में रखा गया है।
  • यानी रोज़मर्रा की ज़रूरतों की लागत घटेगी, लेकिन लक्ज़री और हानिकारक प्रोडक्ट्स पर टैक्स बढ़ेगा।

क्यों लगाई गई ‘सिन गुड्स’ पर सबसे ऊँची जीएसटी दर?

सरकार ने हाल ही में जीएसटी (GST) संरचना में बड़ा बदलाव करते हुए ‘सिन गुड्स’ और लग्ज़री आइटम्स पर 40% जीएसटी दर लागू करने का फैसला किया है। यह उच्च दर केवल चुनिंदा वस्तुओं और सेवाओं पर लागू होगी, जिन्हें समाज या स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माना जाता है, जैसे तंबाकू उत्पाद, शुगरी ड्रिंक्स और जुआ।

क्यों है ऊँची दर का मुख्य उद्देश्य?

इन वस्तुओं पर अधिक कर लगाने के पीछे सरकार का मुख्य उद्देश्य दोहरा है:

  1. हानिकारक खपत को हतोत्साहित करना – तंबाकू, गुटखा, सिगरेट या शुगरी ड्रिंक्स जैसी वस्तुएं स्वास्थ्य पर बुरा असर डालती हैं। इनकी कीमत बढ़ाकर सरकार चाहती है कि लोग धीरे-धीरे इनका उपभोग कम करें।
  2. जनकल्याण के लिए अतिरिक्त राजस्व – इन उत्पादों की बिक्री से मिलने वाले कर राजस्व का बड़ा हिस्सा सरकार स्वास्थ्य और कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च करती है। उदाहरण के लिए, केवल सिगरेट की खपत भारत की GDP का 1% से अधिक नुकसान स्वास्थ्य खर्च और उत्पादकता में गिरावट के रूप में कराती है (स्रोत: Economic Times)।

कीमत बढ़ने पर भी खपत क्यों बनी रहती है?

अर्थशास्त्र की भाषा में इन वस्तुओं की डिमांड प्राइस इनएलास्टिक (Price Inelastic) होती है, यानी कीमतें बढ़ने के बावजूद लोग इन्हें खरीदना जारी रखते हैं। यही कारण है कि सरकार इन पर ऊँची दर लगाकर भी स्थिर और बढ़ता हुआ राजस्व प्राप्त करती है।

विशेष दर क्यों मानी जाती है?

40% जीएसटी दर को स्पेशल रेट कहा जा रहा है क्योंकि यह केवल कुछ चुनिंदा वस्तुओं और सेवाओं पर ही लागू है। पहले इन पर 28% जीएसटी और अलग से Compensation Cess लगाया जाता था। अब सरकार ने Cess को खत्म कर दिया है और उसी को जीएसटी में मिला दिया है।

Next-Generation GST Reforms

Next-Gen GST Reforms में 12% और 28% की दर को पूरी तरह हटा दिया गया है।

  • 5% श्रेणी: खाद्य और वस्त्र से जुड़ी अधिकतर वस्तुएँ।
  • 18% श्रेणी: रेफ्रिजरेटर, एयर कंडीशनर, बड़े टीवी जैसे घरेलू उपकरण।

इससे कर प्रणाली सरल होगी, आम उपभोक्ताओं का बोझ कम होगा और सरकार को उन वस्तुओं से स्थिर राजस्व मिलता रहेगा, जिनकी खपत कीमत बढ़ने पर भी घटती नहीं है।

शराब इस लिस्ट में क्यों नहीं?

शराब GST के दायरे में नहीं आती। इस पर टैक्स लगाने का अधिकार राज्य सरकारों के पास है। हर राज्य अलग-अलग टैक्स वसूलता है, और शराब की कीमत का 67% से 80% हिस्सा टैक्स और ड्यूटीज़ से ही बनता है (ISWAI रिपोर्ट)।

निष्कर्ष

सरकार का मानना है कि इस नई संरचना से टैक्स सिस्टम सरल और पारदर्शी होगा। जहाँ आम जनता को राहत मिलेगी, वहीं समाज और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक चीज़ों पर अतिरिक्त टैक्स लगाकर इनके उपयोग को नियंत्रित करने की कोशिश होगी।

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